Wednesday, October 5, 2022

Economical Crisis

      अल्लाह की बग़ैर आवाज़ की लाठी

      CAUSE TO SUFFER A BLIGHT
मौत की अफवाह आर्थिकमंदी की सूरत बनी


THE SCHOOL OF QURAN 

WORDS
RESEARCH & INFORMATION 

Muhammed Rafique
Researcher & Motivater


Published on 16 April, 2020

क़ुदरत और इंसान पर अपने अख़्तियार और इक़तिदार के लिए किये गए ज़ुल्म और ज़्यादती के सवालों को छुपाने और लोगों को उसकी हक़ीक़त के ताल्लुक से धोखे मे डालने का जवाब दुनिया को हमेशा धोखे की ही सूरत मे मिलता है और मिलेगा ऐ काश हम समझ पाते अल्लाह की क़ायनात मे और उसकी क़ुदरत मे इंसान से ज्यादा कीमती कोई नही और कुछ भी नही है तुम्हारे झूठ ने तुमको को ही सच के धोखे मे डाल दिया सुनने वाले भी तुम और सुनाने वाले भी तुम 

Interpretation of Quranic Verses

Quran / Al-Baqarah 2:61

 وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ ٱلذِّلَّةُ وَٱلْمَسْكَنَةُ وَبَآءُو بِغَضَبٍ مِّنَ ٱللَّهِۗ  

Translation - मुशायदा करो कौम की ज़िल्लत, कौम की पस्ती का, जो उन पर डाल दी गई है और वो शिकार हो गए वबा (महामारी) और मसकीनियत (ग़रीबी) के और उनके अपने आमाल के सबब उन पर अल्लाह का ये ग़ज़ब हुआ ।

And they were covered with humiliation and poverty and returned with anger from Allah [upon them].

Reason of wrath Because of deny the sign of Allah

दुनिया के थोड़े से फायदे के लिये जब इंसान प्रकृति और इंसानियत के तमाम क़ायदे क़ानून को तोड़ने पर पूरी तरह अमादा हो जाता है तब ईश्वर इसके फायदों को नुकसान मे बदल देता है 

समस्या और उसका हल

मुल्क़ के सियासतदानों को चाहिए कि वो अपने पीछे (past) लिये गये फैसलों को remind करे ज़रा देखें कि उन्होंने ऐसे कौन से फैसलें लिए थे जिससे प्रकृति को या  इंसानियत को बहुत नुकसान पहुँचा हो, लोग की आज़ादी उनसे छीन ली गई हो, उन्हें खाने पीने और आम ज़रूरत की चीजों से मोहताज कर दिया गया हो, उनके जज़्बातों उनकी ईज़्ज़तों से खेला गया हो, उन्हें बेसहारा कर दिया गया हो, जहाँ तक की  खुली हवा मे सांस लेने का हक़ भी उनसे छीन लिया गया हो, जहाँ इंसानियत ने सिसक सिसक के दम तोड़ दिया हो, जहाँ इंसानियत पुकार उठी हो कि आखिर ईश्वर की मदद कब आएगी ।

बस हम थोड़ा सा remind करे और वापस अपने लिए ग़लत फैसलों की इस्लाह करे, सुधार करे, और अपने ज़ालिमाना रवैय्ये से बाज़ आये तब कही जाकर उम्मीद की जा सकती है हम सबके ख़ालिक़ हम सबके मालिक से कि,  

 शायद वो हमें माफ कर दे 


Conclusion - वबा (महामारी) दरअसल इंसान के कुफ़्र यानी उसकी क़ुदरत (प्रकृति) और इंसानियत के ताल्लुक से दिये जाने वाले इशारों (कानून क़वानीन) को नज़र अंदाज़ करना और मनमाना करना, ज़ुल्म और ज़्यादती करना दुनिया के थोड़े से फ़ायदे के लिए ज़मीन पर फितना और फ़साद बरपा करना, बेईमानी, झूठ फ़रेब, मक़्क़ारी, अय्यारी, नाइंसाफी, हक़तल्फ़ी, जायज़ नाजायज़ और हलाल हराम की तमीज़ खत्म कर देना सिर्फ अपने मुफाद के लिए और जो लोग कमज़ोर हैं उन पर ज़ुल्म करना उनका मनमाना इस्तेमाल करना दरअसल ख़ुदा के गज़ब को दावत देना है  जिसका नतीजा, कौम के लिए, मुल्क के लिए बल्कि तमाम आलमे इंसानियत के लिये अलावा इसके कुछ नही होता कि लोगों मे बीमारियां महामारियां फैल जाती है छुआ छूत, भेदभाव, दूरियां और फासले बढ़ जाते है निज़ामे मईसत दरहम बरहम हो जाता है ग़ुरबत हावी हो जाती है भुखमरी, बेरोजगारी, बढ़ जाती है समाज मे फहस और मुन्किरात जैसे ज़राइम बढ़ जाते है इंसानियत की रीढ़ की हड्डी चूर चूर हो जाती है इससे लोगों के जान-माल का कसरत से नुकसान होता है हालात इस क़दर ख़राब हो जाते है जिसे संभालना इन्सान के अख़्तियार मे नही होता है सिवाय इसके की वो सब्र और इस्तिकामत से काम ले और अपनी लाचारी और बेबसी मे सब्र करे और ठहरा रहे उस वक़्त तक जब तक वक़्त गुज़र ना जाये और हालात सुधर ना जाये, यही है वबा अगर एक बार फैल गई फिर वो अपना टॉरगेट किये बगैर नही जाती है। इसका हल सिवाय इसके कुछ नही की इंसान तौबा करे और अपने मानवीय मामलात को दुरुस्त करे अल्लाह की तरफ रूजू करे और उसकी क़ुदरत का और लोगों का जो हक़ है उसे अदा करे ताकि उसे अल्लाह के ग़ज़ब से निज़ात हासिल हो लोगों को ईज़्ज़त आबरू, अम्न अमान के साथ जीने दो ताकि तुम्हें भी जीने दिया जाये

Quran / Ta Ha 20:128

أَفَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّنَ ٱلْقُرُونِ يَمْشُونَ فِى مَسَٰكِنِهِمْۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَٰتٍ لِّأُو۟لِى ٱلنُّهَىٰ 

Then, has it not become clear to them how many generations We destroyed before them as they walk among their dwellings? Indeed in that are signs for those of intelligence.

फिर क्या उनको इससे भी सबक़ न मिला कि हम उनसे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुके है, जिनकी बस्तियों में वे चलते-फिरते है? निस्संदेह बुद्धिमानों के लिए इसमें बहुत-सी निशानियाँ है


Quran / Aal-e-Imran 3:175

إِنَّمَا ذَٰلِكُمُ ٱلشَّيْطَٰنُ يُخَوِّفُ أَوْلِيَآءَهُۥ فَلَا تَخَافُوهُمْ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ 

That is only Satan who frightens [you] of his supporters. So fear them not, but fear Me, if you are [indeed] believers.

वह तो शैतान है जो अपने मित्रों को डराता है। अतः तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझी से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो

Quran / Al-Anfal 8:19

إِن تَسْتَفْتِحُوا۟ فَقَدْ جَآءَكُمُ ٱلْفَتْحُۖ وَإِن تَنتَهُوا۟ فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْۖ وَإِن تَعُودُوا۟ نَعُدْ وَلَن تُغْنِىَ عَنكُمْ فِئَتُكُمْ شَيْـًٔا وَلَوْ كَثُرَتْ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُؤْمِنِينَ 

If you [disbelievers] seek the victory -  the defeat has come to you. And if you desist [from hostilities], it is best for you; but if you return. We will return, and never will you be availed by your [large] company at all, even if it should increase; and [that is] because Allah is with the believers.

यदि तुम फ़ैसला चाहते हो तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ चुका और यदि बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है। लेकिन यदि तुमने पलटकर फिर वही हरकत की तो हम भी पलटेंगे और तुम्हारा जत्था, चाहे वह कितना ही अधिक हो, तुम्हारे कुछ काम न आ सकेगा। और यह कि अल्लाह मोमिनों (मानने वालों) के साथ होता है ।

आखिर इंसान मानता क्यों नहीं है जबकि जानता है कि इस क़ायनात के कारखाने मे इंसान का दख़ल उतना है जितना इस क़ायनात की खला (space) मे मैटर का और मैटर मे ज़मीन (earth) का और ज़मीन मे आबादी का और आबादी मे इंसान का और इंसान मे कोशिश का, बकाया काम क़ायनात की क़ुदरत मे और क़ुदरत के तवाज़ुन मे सिर्फ और सिर्फ ख़ुदा का है ।

"वा आखिरुददआवाना अनिल अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलामीन"




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